Saturday, September 12, 2009

Aaj Kuchh Maangtee Hoon Priya - Manoshi Chatterjee

आज कुछ माँगती हूँ प्रिय

आज कुछ माँगती हूँ मैं
प्रिय क्या दे सकोगे तुम?
मौन का मौन में प्रत्युत्तर
अनछुये छुअन का अहसास
देर तक चुप्पी को बाँध कर
खेलो अपने आसपास
क्या ऐसी सीमा में खुद को
प्रिय बांध सकोगे तुम
आज कुछ माँगती हूँ प्रिय...

तुम्हारे इक छोटे से दुख से
कभी जो मेरा मन भर आये
ढुलक पड़े आँखों से मोती
सीमा तोड़ कर बह जाये
तो ज़रा देर उँगली पर अपने
दे देना रुकने को जगह तुम
उसे थोड़ी देर का आश्रय
प्रिय क्या दे सकोगे तुम?
आज कुछ मांगती हूँ प्रिय...

कभी जब देर तक तुम्हारी
आंखों में मैं न रह पाऊँ
बोझिल से सपनों के भीड़
में धीरे से गुम हो जाऊँ
और किसी छोटे से स्वप्न
के पीछे जा कर छुप जाऊँ
ऐसे में बिन आहट के समय
को क्या लाँघ सकोगे तुम
आज कुछ माँगती हूँ प्रिय...

- मानोशी चटर्जी


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