Monday, September 7, 2009

Jo Hawaa Mein Hai -Umashankar Tiwari

जो हवा में है

जो हवा में है, लहर में है
क्यों नहीं वह बात
        मुझमें है?

शाम कंधों पर लिए अपने
ज़िन्दगी के रू-ब-रू चलना
रोशनी का हमसफ़र होना
उम्र की कन्दील का जलना
आग जो
        जलते सफ़र में है
क्यों नहीं वह बात
        मुझमें है?

रोज़ सूरज की तरह उगना
शिखर पर चढ़ना, उतर जाना
घाटियों में रंग भर जाना
फिर सुरंगों से गुज़र जाना
जो हंसी कच्ची उमर में है
क्यों नहीं वह बात
        मुझमें है?

एक नन्हीं जान चिड़िया का
डाल से उड़कर हवा होना
सात रंगों के लिये दुनिया
वापसी में नींद भर सोना
जो खुला आकाश स्वर में है
क्यों नहीं वह बात
        मुझमें है?

- उमाशंकर तिवारी


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