Saturday, September 12, 2009

Parmaanu Urjaa - Kavi Kulwant Singh

परमाणू ऊर्जा

अति सूक्ष्म परमाणु
असीमित उर्जा भंडार
साध इनकी शक्ति
सृजनात्मकता अपार!

कलुषित मन विचार
दे रूप इसे विकराल,
यह वो ब्रह्मास्त्र है -
जिससे धरा बने पाताल!

परमाणुओं का यह महादैत्य
कल्पित नहीं यथार्थ है,
यदि बोतल से निकला
सृष्टि का विनाश है!

हिरोशिमा तो अल्पांश था
परमाणु शक्ति विध्वंस का,
परमाणु अस्त्रागार है -
सौ सौ धरा के नाश का!

संभल मानव
अभी समय है,
विध्वंस तांडव से पूर्व
निद्रा अपनी पूर्ण कर ले!

इस अग्नि बीज लो
एकत्र करना बंद कर,
पूर्व इसमें भस्म हो
धरा मानव इतिहास बन ले!

- कवि कुलवंत सिंह


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