बिखरे पत्ते
इस बसंत में सखी सुना है तुमने
नीम कोंपलें फूटी थी
बढ़ते बचपन के पंखों पर
कड़वे सच की छाँव तले
खुद में पराया दर्द सा पाले
कुछ जागी कुछ सोई थी
इस बसंत में सखी सुना है तुमने
नीम कोंपलें फूटी थी
कोंपल छोटी बिटिया जैसी
चूनर में यौवन दबाए
झुकी झुकी आंखों से अपने
सपने बनाती मिटाती थी
इस बसंत में सखी सुना है तुमने
नीम कोंपलें फूटी थी
पत्ती ने फिर ओंस जनी
हीरे मोती सी सहेजे उसको
बिटिया झुलसती जेठ धूप में
दर दर पानी भटकती रही
इस बसंत में सखी सुना है तुमने
नीम कोंपलें फूटी थी
उभरे कंगूरों से सजकर
दवा हवा में घुलती रही
नीम नहीं बिटिया भी मेरी
हर दिन पतझड़ सहती रही
इस बसंत में सखी सुना है तुमने
नीम कोंपलें फूटी थी
1 comment:
aapki kavita padkar bahut achchha laga.aur kavitayen send karo. Please majhe aapke vare m baten, aap kahan se hai, kya karti hai. ye jankai aap majhe email par ya 7742364762 par bhej sakti hai. plz...
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