Friday, September 11, 2009

Geet Banane Ki Zid Hai - Yash Malaviya

गीत बनाने की जिद है

दीवारों से भी बतियाने की जिद है
हर अनुभव को गीत बनाने की जिद है

दिये बहुत से गलियारों में जलते हैं
मगर अनिश्चय के आँगन तो खलते हैं

कितना कुछ घट जाता मन के भीतर ही
अब सारा कुछ बाहर लाने की ज़िद है

जाने क्यों जो जी में आया नहीं किया
चुप्पा आसमान को हमने समझ लिया

देख चुके हम भाषा का वैभव सारा
बच्चों जैसा अब तुतलाने की ज़िद है

कौन बहलता है अब परी कथाओं से
सौ विचार आते हैं नयी दिशाओं से

खोया रहता एक परिन्दा सपनों का
उसको अपने पास बुलाने की ज़िद है

सरोकार क्या उनसे जो खुद से ऊबे
हमको तो अच्छे लगते हैं मंसूबे

लहरें अपना नाम-पता तक सब खो दें
ऐसा इक तूफान उठाने की ज़िद है

- यश मालवीय


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