फसाना
रहो अपने दिल में
उड़ो आसमां तक
ज़मीं से आसमां तक
तेरा फसाना होगा
न जाने क्यूँ
न उड़ता हूँ मैं
न रहता हूँ दिल में
फिर भी
हसरत है कि
फसाना बन जाऊँ
फसाने बहुत हुए
सदियों से
कुछ तुफां
से आये
और बिखर गये
कुछ हलचलें
दिखातीं हैं
सतहों पर
न जाने किस
दबे तुफां की
तसवीर हैं ये
दिलों, आसमां औ जमीं
की तारीख
इन फसानों
में सिमटी
बिखरी है
कुछ बनने की
ख्वाहिश
कुछ गढ़ने
की ज़रूरत
मैं एक फसाना हूँ
एक कशिश
एक धड़कन
हूँ दिल की
जिसकी आवाज
सदियों से
चंद फसानों में
निरंतर
कल कल
नदी के नाद
सी
थिरकती आयी
है।
- रणजीत कुमार मुरारका
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