Saturday, August 15, 2009

Lachari - Ramanath Awasthi

लाचारी

न जाने क्या लाचारी है
आज मन भारी-भारी है

           हृदय से कहता हूँ कुछ गा
           प्राण की पीड़ित बीन बजा
           प्यास की बात न मुँह पर ला

यहाँ तो सागर खारी है
न जाने क्या लाचारी है
आज मन भारी-भारी है

           सुरभि के स्वामी फूलों पर
           चढ़ये मैंने जब कुछ स्वर
           लगे वे कहने मुरझाकर

ज़िन्दगी एक खुमारी है
न जाने क्या लाचारी है
आज मन भारी-भारी है

           नहीं है सुधि मुझको तन की
           व्यर्थ है मुझको चुम्बन भी
           अजब हालत है जीवन की

मुझे बेहोशी प्यारी है
न जाने क्या लाचारी है
आज मन भारी-भारी है

- रमानाथ अवस्थी


No comments:

My Blog List