गीत-कवि की व्यथा - एक
ओ लेखनी! विश्राम कर
अब और यात्रायें नहीं।
मंगल कलश पर
काव्य के अब शब्द
के स्वस्तिक न रच।
अक्षम समीक्षायें
परख सकतीं न
कवि का झूठ-सच।
लिख मत गुलाबी पंक्तियाँ
गिन छन्द, मात्रायें नहीं।
बन्दी अंधेरे
कक्ष में अनुभूति की
शिल्पा छुअन।
वादों-विवादों में
घिरा साहित्य का
शिक्षा सदन।
अनगिन प्रवक्ता हैं यहाँ
बस, छात्र-छात्रायें नहीं।
- किशन सरोज
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