Tuesday, August 11, 2009

Sampoorna Yaatraa - Divik Ramesh

सम्पूर्ण यात्रा

प्यास तो तुम्हीं बुझाओगी नदी
मैं तो सागर हूँ
प्यासा
अथाह।

तुम बहती रहो
मुझ तक आने को।
मैं तुम्हें लूँगा नदी
सम्पूर्ण।

कहना तुम पहाड़ से
अपने जिस्म पर झड़ा
सम्पूर्ण तपस्वी पराग
घोलता रहे तुममें।

तुम सूत्र नहीं हो नदी न ही सेतु
सम्पूर्ण यात्रा हो मुझ तक
जागे हुए देवताओं की चेतना हो तुम।

तुम सृजन हो
चट्टानी देह का।
प्यास तो तुम्ही बुझाओगी नदी।

मैं तो सागर हूँ
प्यासा
अथाह

दिविक रमेश


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