Saturday, August 15, 2009

Rachna Aur Tum - Ramanath Awasthi

रचना और तुम

मेरी रचना के अर्थ बहुत हैं
जो भी तुमसे लग जाय लगा लेना

मैं गीत लुटाता हूँ उन लोगों पर
दुनियाँ में जिनका कुछ आधार नहीं
मैं आँख मिलाता हूँ उन आँखों से
जिनका कोई भी पहरेदार नहीं

आँखों की भाषा तो अनगिन हैं
जो भी सुन्दर हो वह समझा देना।

पूजा करता हूँ उस कमजोरी की
जो जीने को मजबूर कर रही है।
मन ऊब रहा है अब इस दुनिया से
जो मुझको तुमसे दूर कर रही है

दूरी का दुख बढ़ता जाता है
जो भी तुमसे घट जाए घटा लेना

कहत है मुझ से उड़ता हुआ धुँआ
रुकने का नाम न ले तू चलता जा
संकेत कर रहा है नभ वाला घन
प्यासे प्राणों पर मुझ सा गलता जा

पर मैं प्यासा हूँ मरूस्थल सा
यह बात समंदर को समझा देना

चाँदनी चढ़ाता हूँ उन चरणों पर
जो अपनी राहें आप बनाते हैं
आवाज लगाता हूँ उन गीतों को
जिनको मधुवन में भौंरे गाते हैं

मधुवन में सोये गीत हजारों है
जो भी तुमसे जग जाए जगा लेना

- रमानाथ अवस्थी


No comments:

My Blog List